मकर संक्रांति उत्सव सामाजिक समरसता , वसुधैव कुटुम्बकम, मेल-जोल और मदद के उन मानवीय भावों से जुड़ा उत्सव है !

 सभी देशवासियों को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ ! 

मकर संक्रांति का उत्सव संघ के ६ उत्सवों में से एक है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में इसे प्रमुख रूप से मनाया जाता है, 
वैसे तो भारत में हर दिन त्यौहारों है और हर दिन का महत्व है 
लेकिन मकर संक्रांति का दिन विशेष महत्व रखता है ! 

इस दिन भगवान सूर्यनारायण मकर राशि में प्रवेश करते है तथा दक्षिणायन समाप्त होकर उत्तरायण प्रारंभ होता है ! 

यह दिन समाज को अज्ञान रूपी अंधकार से प्रकाश रुपी ज्ञान की ओर, हीनता से श्रेष्ठता की ओर, क्षुद्र्ता से गौरव की ओर, निराशा से आशा की ओर तथा अवगुणों का नाश कर सद्गुणों की ओर जाने की प्रेरणा देता है ! 

हिंदू समाज को एकाुट होने की आवश्यकता ! 

समाज से छुआछूत और रुढ़ियों को समाप्त कर समरसता एवं स्वाभिमान जगाने का पर्व है मकर संक्रांति। हमार अंदर चेतना जगाने और भारत को पुन: परम वैभव बनाने का संकल्प लेने का उत्सव है यह पर्व। विभिन्न जातियों में बटे हिंदू समाज को एकाुट होने की आवश्यकता है। हिंदू समाज को संगठित होने की आवश्यकता है तिल और गुड़ की तरह बिखरहिंदू समाज को एकता के सूत्र में पिरोने की आवश्यकता है। जब तक हिंदू समाज संगठित नहीं होगा, भारत माता के अस्तित्व पर खतर के बादल मंडराते रहेंगे। 

सामाजिक समरसता की दृष्टि से भी यह उत्सव महत्वपूर्ण है। छोटे – छोटे एवं बिखरे हुए तिलों के समान हिंदू समाज में वर्ग विशेष के संग किरण चिंतन एवं व्यवहार से प्रभावित होकर अपने परिवार से अलग हुए बंधु बांधवों को गुण रुपी स्नेहा आत्मीयता एवं एकात्मकता की अनुभूति एवं व्यवहार के आधार पर एक समरस सुसंगठित समृद्धि व सभी प्रकार से सुख वह सुरक्षित समाज जीवन निर्माण करने का मंगलकारी एवं उदास भाव निर्माण होता है ! 



✨उत्तरायण महापर्व का लें पूरा लाभ...
जीवन को सुख और स्वास्थ्य से भरपूर बनाने का त्यौहार उत्तरायण पर्व

उत्तरायण विशेष → 14 & 15 जनवरी 

मकर संक्रांति → (पुण्यकाल :- सूर्योदय से सूर्यास्त तक)

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है।
मकर संक्रान्ति पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है । पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब इस पर्व को मनाया जाता है ।

यह त्योहार जनवरी माह के तेरहवें, चौदहवें या पन्द्रहवें दिन (जब सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है ) पड़ता है । मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारम्भ होती है । इसलिये इसको उत्तरायणी भी कहते हैं ।

तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल 'संक्रान्ति' कहते हैं ।

सूर्य एक मास में एक राशि पर रहता है ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 12 राशियां हैं उनका क्रम से नाम है – ‘ मेष ‘ , ‘ वृष ‘,  ‘मिथुन ‘ , ‘  कर्क ‘ , ‘ सिंह ‘ , ‘ कन्या ‘ , ‘ तुला ‘ , ‘ वृश्चिक ‘ , ‘ धनु ‘ , ‘ मकर ‘ , ‘ कुंभ ‘तथा ‘ मीन ‘ इन में से प्रत्येक में सूर्य कर्म का एकमात्र रहता है। सूर्य प्रत्येक मास राशि परिवर्तन करता है। इस प्रकार पूरे वर्ष में तदानुसार 12 संक्रांति या होती है।


इन 12 राशियों में से सूर्य का मकर राशि में प्रवेश अति महत्वपूर्ण माना गया है। मकर राशि में प्रवेश करते समय तक सूर्य की गति दक्षिण दिशा की ओर रहती है दक्षिण दिशा को अपने यहां शुभ नहीं माना गया है। मान्यता है कि उधर यमलोक है यमलोक मृत्यु का द्योतक है। साक्षात यमराज का निवास स्थान है एक वैज्ञानिक तथ्य का पौराणिक वर्णन है।

सूर्य का मकर राशि में प्रवेश दक्षिण दिशा की और उसकी गति के विराम का बोध कराता है। इसके बाद सूर्य उत्तरायण होता है सूर्य का उत्तर दिशा की ओर उन्मुख होना या गतिमान होना ही उत्तरायण है। यह उत्तरायण की स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक सूर्य कर्क रेखा पर नहीं पहुंच जाता। अतः जीवन की आधार ऊष्मा की वृद्धि शनै-शनै होगी जीवन के अस्तित्व को बल मिलेगा चराचर जगत मानव पशु पक्षी बना दी में जीवन की पुष्टि होगी इसलिए सूर्य को मकर राशि में प्रवेश का विशेष महत्व है।

महाभारत में वर्णित प्रसंग है भीष्म पितामह शरशैया पर थे इक्षा मृत्यु का वरदान होने के कारण उन्होंने प्राण नहीं त्यागे। उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि वह सूर्य के उत्तरायण होने पर ही प्राण त्याग देंगे। अर्जुन को उन्होंने कहा कि जब तक उत्तरायण की स्थिति में सूर्य नहीं आता तब तक उनके लिए वीरों के अनुरूप तकिए की व्यवस्था करें , अर्जुन ने आज्ञानुसार तीरों का तकिया उन्हें प्रदान किया। मकर संक्रांति का महत्व इस दृष्टि से और भी अधिक स्पष्ट होता है हमारी विचार परंपरा में यह मान्यता भी है कि सूर्य के उत्तरायण की स्थिति में प्राण त्यागने पर स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त होता है।

मकर संक्रांति संक्रमण यानी परिवर्तन का बोध कराने वाला दिवस है। परिवर्तन सृष्टि का नियम है सर्वत्र प्रतिक्षण परिवर्तन लक्षित है परिवर्तन की दिशा क्या हो इसका विचार आवश्यक है। प्रत्येक परिवर्तन स्वागत योग्य नहीं है परिवर्तन जीवन की रक्षा और पुष्टि के लिए ही अपेक्षित है , जिस परिवर्तन से सृष्टि के अस्तित्व एवं विकास में सहायता प्राप्त हो वह उचित है शेष त्याज्य है।

संक्रांति का अर्थ है सम्यक दिशा में क्रांति अर्थात योग्य दिशा में समग्र चिंतन एवं परिवर्तन जो सामाजिक जीवन का उन्नयन करने वाला तथा मंगलकारी हो प्रचलित वाला नहीं जहां क्रांति का अर्थ रक्त पात एवं वैमनस्य उत्पन्न कर स्वयं को स्थापित करना है।


किस के लिए विशेष ?

१) जिनके जीवन में अर्थ का अभाव... पैसो की तंगी बहुत देखनी पड़ती है,

२) जिनको कोई बहुत परेशान कर रहा है,

३) जिनके शरीर में रोग रहते हैं... मिटते नहीं हैं |

उन सभी के लिए यह योग बहुत उत्तम है |

क्या करना चाहिए ?

१) नियमों का पालन कर सकें तो बहुत अच्छा... नमक -मिर्च बिना का भोजन करें |

२) आदित्यह्रदय स्त्रोत्र का पाठ भी जरुर करें... जितना हो सके 1/2/3 बार...

३) जो आप चाहते हैं... सुबह स्नान आदि कर के श्वास गहरा लेके रोकना...

गायत्री मंत्र बोलना... संकल्प करना... "हम ये चाहते हैं प्रभु !... ऐसा हो...

" फिर श्वास छोड़ना... ऐसा ३ बार जरुर करें फिर अपना गुरु मंत्र अथवा इष्ट मंत्र का जप करें |

४) सूर्य भगवान की पूजा करे |

सूर्य पूजन विधि :

१) सूर्य भगवान को तिल के तेल का दिया जला कर दिखाएँ, आरती करें |

२) जल में थोड़े चावल, शक्कर, गुड, लाल फूल या लाल कुमकुम मिला कर सूर्य भगवान को अर्घ्य दें |

विशेष सूर्य अर्घ्य मंत्र → ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नमः
इस मंत्र से सूर्यनारायण की वंदना कर लेना, उनका चिंतन करके प्रणाम कर लेना।



इससे सूर्यनारायण प्रसन्न होंगे, नीरोगता देंगे और अनिष्ट से भी रक्षा करेंगे।
रोग तथा अनिष्ट का भय फिर आपको नहीं सताएगा।
ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नमः
जपते जाओ और मन ही मन सूर्यनारायण का ध्यान करते जाओ, नमन करो।
फिर...
*ॐ सूर्याय नमः *
*ॐ रवये नमः *
*ॐ भानवे नमः *
*ॐ आदित्याय नमः *
*ॐ माकॅण्डाय नमः *
*ॐ भास्कराय नमः *
*ॐ दिनकराय नमः *
*ॐ दिवाकराय नमः *
*ॐ मरिचये नमः *
*ॐ हिरणगर्भाय नमः*
*ॐ गभस्तिभीः नमः *
*ॐ तेजस्विनाय नमः *
*ॐ सहस्त्रकिरणाय नमः *
*ॐ सहस्त्ररश्मिभिः नमः *
*ॐ मित्राय नमः *
*ॐ खगाय नमः *
*ॐ पूष्णे नमः *
*ॐ अर्काय नमः *
*ॐ प्रभाकराय नमः *
*ॐ कश्यपाय नमः *
*ॐ श्री सवितृ सूर्य नारायणाय नमः *

उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण के इन नामों का जप विशेष हितकारी है। यह मंत्रोच्चार करने के पश्च्यात सूर्य भगवान को प्रार्थना करे की हमें निरोगी बनाये , इस दिन तिल के उबटन व तिलमिश्रत जल से स्नान, तिलमिश्रित जल का पान, तिल का हवन, तिल का भोजन तथा तिल का दान सभी पापनाशक प्रयोग हैं ।

सूर्यास्त के बाद कोई भी तिलयुक्त पदार्थ नहीं खाना चाहिए।

सम्यक दिशा में क्रांति अर्थात समाज में ऐसी क्रांति लाना जो सभी प्रकार से शुभ तथा समाज जीवन का उन्नयन करने वाली हो ! क्रांति की बात आज बहुत सुनाई पड़ती है , क्रांति का अर्थ है आमूल परिवर्तन , अन्य समाजो में क्रांतिया हुई है, किन्तु वे सभी वैमनस्य उत्पन्न करने वाली हुई उनका परिणाम समाज जीवन के पतन के रूप में सामने आया ! 

हमारे देश में जो क्रांतियां हुई वे समाज जीवन को बलशाली करने वाली हुई ! उदाहरण श्री राम, श्री कृष्ण, चाणक्य द्वारा महापद्मनंद का नाश व चंद्रगुप्त को आगे लाया जाना, छत्रपति शिवाजी द्वारा हिंदू पदपादशाही की स्थापना आदि ऐसे उदाहरण है , ये सभी संक्रांतियां थी ! 

क्रांति के चार चरण - किसी भी परिवर्तन के लिए चार बातो की आवश्यकता रहती है, सर्वप्रथम एक विचार जो शाश्वत सिद्धांतों पर आधारित हो , दूसरा चरण है योजना, उसके बाद योजना पूर्ति के लिए संगठन तथा अंत में लक्ष्य प्राप्ति ! 

आज अपने देश का विचार विश्व में चलने वाली विभिन्न गतिविधियों के संदर्भ में करें स्पष्टता ही , यह संक्रमण काल है। हमारे देश तथा समाज जीवन में तीव्रता एवं परिवर्तन हो रहे हैं परिवर्तन की दिशा ठीक है अथवा नहीं यह हमें विचारना है। परिवर्तन प्रगति की ओर ले जाए तो उसकी दिशा ठीक है , परंतु आगे बढ़ना ही प्रगति नहीं है।

वह अच्छे दिशा में आगे बढ़ें तभी स्वीकार्य है। परिवर्तन की दिशा तभी ठीक होगी जब वह समाज में सुरक्षार्थ उपयोगी हो सर्वांगीण विकास के लिए सहायक हो। देश की रक्षा के लिए समर्थ हो तथा गौरव बढ़ाने का आधार हो इसलिए जन्म पर प्रसन्नता एवं मृत्यु पर शोक प्रकट करते हैं। जन्म जीवन का परिचायक है मृत्यु जीवन के  अवसान का , भारत में जीवन की पूजा होती है मृत्यु की नहीं।

परिवर्तन की दिशा शास्त्र युद्ध , सम्यक विचार मंथन के परिणाम स्वरुप पहुंचे निष्कर्ष के अनुसार निश्चित होनी चाहिए। इस विचार मंथन का आधार अपने देश की चिंतनधारा परंपरा संस्कृति सामाजिक मानसिकता एवं मनोविज्ञान की गहरी समझ होनी चाहिए। विचार ही हर परिवर्तन का प्रेरणा स्रोत होता है सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक एवं धार्मिक परिवर्तन का अध्ययन यही स्पष्ट करता है।

संसार के सभी देशों में समय-समय पर हुए परिवर्तनों का आधार कोई न कोई विचार रहा है।  फ्रांस की प्रसिद्ध राज्य क्रांति का प्रेरक स्वतंत्रता बंधुत्व एवं समानता घोषवाक्य रहा।  इसके पीछे का विचार लोगों का संबल बना। अमेरिका में परिवर्तन का स्वतंत्र युद्ध कहा गया है। स्वतंत्रता प्राप्त करने की इच्छा से प्रेरित हो उन्होंने अंग्रेजों से मुक्ति पाई , जनतंत्र की स्थापना की उनकी प्रेरणा का स्रोत इस संबंध में ‘ लिंकन ‘ के द्वारा प्रतिपादित जनतंत्र की विश्वविद्यालय व्याख्या जनता का जनता द्वारा तथा जनता के लिए प्रेरक रही। रूस में मार्क्स  एवम लेनिन के विचार आधार बने पूंजीवादी तथा समाजवादी अवधारणाएं पाश्चात्य सभ्यता की देन है।

दोनों ही विचार धाराओं के आधार पर योग्य दिशा में परिवर्तन संबंधित देशों में नहीं हो पाया है।  समाजवाद को स्वीकार कर उत्सर्ग के शिखर बैठने की कामना लेकर चलने वाला रूसी साम्राज्य इसी कारण लड़खड़ाकर ध्वस्त हो गया। वह त्रुटिपूर्ण विचार के आधार पर गलत दिशा में चलने के कारण अपने पथ से ही टूट गया। 70 वर्ष की अल्प काल में उस देश ने अपनी गलती स्वीकार कर ली पूंजीवादी विचारधारा को लेकर चलने वाले सभी देश अनेक प्रकार से संतुष्ट हैं उनकी सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था एवं संस्थाएं चरमरा रही है , निकट भविष्य में ध्वस्त होने के चिन्ह प्रकट कर रही है।

समाजवादी एवं पूंजीवादी विचारधाराओं के आधार पर मानव को परिपूर्ण सुखी एवं विश्व को पूर्ण रुप से सभी प्रकार से सुरक्षित कराने की संभावनाए क्षीण होती जा रही है। संसार के बड़े-बड़े विचारकों की सोच इसी प्रकार की है दोनों विकल्प मानव की त्रासदी को दूर नहीं कर पा रहे हैं। भयमुक्त सुरक्षित मानव जीवन के लिए विश्व में उपयुक्त परिस्थितियां एवं वातावरण नहीं बना पा रहे हैं पश्चिमी जगत में परिवर्तन गलत दिशा में हुआ।

भारत के पास तीसरा विकल्प है। यह परिवर्तन को सही तथा योग्य दिशा प्रदान करेगा भारतीय ऋषि मुनियों ने अपने तप और ज्ञान के आधार पर जिस भारतीय चिंतनधारा का अजस्त्र प्रवाहित किया है , वही विश्व के जन – जन को सुख चयन शांति प्रदान करने में समर्थ है। संपूर्ण सृष्टि को एक कुटुंब मानकर चलने के कारण भारतीय विचारधारा विश्व का कल्याण करेगी पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानव दर्शन भारतीय सोच को स्पष्ट करता है समस्त मानवता ही नहीं वरन संपूर्ण सृष्टि का कल्याण भारतीय चिंतन में है ! 

*सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया ,

सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुख:भागभवेत। ‘

स भारतीय चिंतन को प्रबल बनाने का एक मात्र यशस्वी साधन संघ कार्य है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने संपूर्ण हिंदू समाज के माध्यम से इस हिंदू राष्ट्र को परम वैभव तक पहुंचाने का उदात  लक्ष्य अपने सामने रखा है। लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति को जागृत संस्कारित संगठित कर शक्तिशाली समाज एवं राष्ट्रीय जीवन की योजना बनाई है तथा दैनिक शाखा व अन्य विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में प्रचलित ऊंच नीच छुआछूत आधी समाज तोड़कर रूढ़ियों को समाप्त कर समरसता एवं स्वाभिमान का भाव जगह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता हुआ दिखाई दे रहा है ! 

यह सामाजिक समरसता, मेल-जोल और मदद के उन मानवीय भावों से जुड़ा उत्सव है, जिनकी आज के बिखरते भरोसे के परिवेश में बहुत अधिक दरकार है। यह पर्व प्रकृति से जुड़ाव की सीख भी लिए है। यह सृष्टि के ऊर्जा स्रोत सूर्य की आराधना का ऐसा उत्सव है, जो सकारात्मक सोच और सह-अस्तित्व का प्रकाश लिए है। जन कल्याण का भाव लिए इस पर्व पर किये जाने वाले दान की भी खूब महिमा है। सामाजिक-आर्थिक असमानता की स्थितियों के बीच यह त्योहार परोपकार की सीख देता है। दूसरों की जरूरतों के लिए अपने पास जो कुछ है, उसे साझा करने का भाव लिए है। सूर्य की उपासना और सहायता के भाव से जुड़ा यह पर्व व्यावहारिक रूप में हमें दूसरों की मदद करना सिखाता है। सूर्य अपना प्रकाश और ऊर्जा पूरे संसार को बिना किसी भेदभाव के बांटता है। यही वजह है कि यह त्योहार सामाजिक-पारंपरिक रीति-नीति ही नहीं, आध्यात्मिक भाव से भी जुड़ा है। सुखद यह भी है कि यह आध्यात्मिक भाव भी समाज को जोड़ने की गहरी सीख लिए है।


मकर संक्रांति का पर्व आध्यात्मिक-वैज्ञानिक दोनों आधार लिए है। उत्तरायण के बाद दिन बड़े और रात का समय कम होने लगता है। रात के अंधकार को नकारात्मकता और दिन के उजाले को सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए मकर संक्रांति को भी प्रकाश में बढ़ोतरी और अंधकार में कमी के पर्व के रूप में देखा जाता है। तभी तो सूर्य आराधना का यह उत्सव अपनी चेतना जगाने का त्योहार भी है, जिसका मुख्य भाव ही है ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’, यानी जीवन अंधकार से प्रकाश की ओर जाए। विचार और व्यवहार को सकारात्मकता की रोशनी मिले। यही वजह है कि मकर संक्रांति को मन और जीवन की प्रगति के पर्व तौर पर भी मनाया जाता है। निस्संदेह, विचारों की चेतना और विकास की समभाव भरी गति ही किसी राष्ट्र को तरक्की की राह पर ले जा सकती है ! 

यह हमारे देश की सांस्कृतिक विविधता ही है कि यह पर्व अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। देश का कोई भी हिस्सा हो, यह पर्व आनंद के पल साथ बिताने का पर्व है। यही वजह है कि मकर संक्रांति का त्योहार सामाजिक संबंधों को मजबूती देने वाला तो है ही, यह मन की सेहत भी संवारता है। माना जाता है कि सूर्य का उत्तर दिशा में होना भी आध्यात्मिक रूप से काफी महत्व रखता है। उत्तरायण में सूर्य के होने से व्यक्ति में नयी ऊर्जा का संचार होता है, जिससे मन को सकारात्मक अनुभूतियों की सौगात मिलती है। आपसी प्रेम भाव को जगाना और सद्भाव को बढ़ाना, इस त्योहार का मूल भाव है। भाषा, क्षेत्र और आर्थिक स्थिति की ऊंच-नीच से दूर यह ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का भाव लिए है ! 

यह पर्व इसी बात को पुख्ता करता है कि मानसिक, वैचारिक और व्यावहारिक स्तर पर संवेदनाओं और समता भरे व्यवहार को जीना ही एक बेहतर समाज बना सकता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नालासोपारा ( पश्चिम)

*मकर संक्रांति उत्सव पूर्ण*

*सोपारा (शुर्पारक) उपनगर*

मकर संक्रांति के अवसर पर तिलगुण के साथ मणिकर्णिका शाखा &  हरिहरेश्वर शाखा के स्वयंसेवक हरिहरेश्वर मैदान एकत्रित हुए, शाखा लगी तत्पश्चात नालासोपारा पश्चिम बस डिपो में कर्मचारी , सफाई कर्मी ,आम नागरिक व नारायण सेवा वस्ती में तिलगुण का वितरण हुआ। इतना प्रयास भी लोगो के चेहरे पर खुशी के क्षण लाने के लिए पर्याप्त हुई।

*श्री प्रस्थ उपनगर*

मकर संक्रांति के अवसर पर तिलगुण के साथ वृंदावन शाखा ,महावीर शाखा के स्वयंसेवक शनि मंदिर एकत्रित हुए, शाखा लगी तत्पश्चात सफाई कर्मी , रिक्शा वाले, आम नागरिक व शनी मंदिर सेवा वस्ती  में तिलगुण का वितरण हुआ। इतना प्रयास भी लोगो के चेहरे पर खुशी के क्षण लाने के लिए पर्याप्त हुई।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिंदू राष्ट्र को परम वैभव पर पहुचानें का लक्ष्य अपने सामने रखा, यह प्रथम चरण है ! इस विचार की सिद्धि के लिए समाज के व्यक्ति-व्यक्ति को संस्कारित करने की योजना संघ ने बनाई है , दैनिक शाखा के माध्यम से संघ इस योजना की पूर्ति के लिए संगठन तैयार कर रहा है , इसी दैनन्दिन शाखा के द्वारा समाज में परिवर्तन लाकर हम अपने राष्ट्र को समुन्नत करने में सफल होंगे , हमारा विचार विधायक है , हम स्थायी परिवर्तन में विश्वास रखते है ! 


इस दिन भगवान सूर्यनारायण मकरराशि मे प्रवेश करते है तथा दक्षिणायन समाप्त होकर उत्तरायण प्रारम्भ होता है ।

यह दिन समाज को अज्ञान रूपी अंधकार से प्रकाश रूपी ज्ञान की ओर ,हीनता से श्रेष्ठता की ओर,क्षुद्रता से गौरव की ओर ,निराशा से आशा की ओर ,तथा अवगुणों का नाश कर सद्गुणों की ओर जाने की प्रेरणा देता है ।

यह उत्सव किसी न किसी रूप मे सम्पूर्ण भारत मे मनाया जाता है। तिल व गुड़ के पदार्थ खाने की इस दिन प्रथा है । छोटे-छोटे तिलों की तरह बिखरे समाज को गुड़ रूपी आत्मीयता से बांधकर संगठित करने का उदात्त संस्कार दिया जाता है ।

** संक्रान्ति का अर्थ --
1- संक्रान्ति का अर्थ -सम्यक दिशा मे क्रान्ति अर्थात समाज मे ऐसी क्रान्ति लाना जो सभी प्रकार से शुभ तथा समाज जीवन का उन्नयन करने वाली हो ।

2- क्रान्ति की बात आज बहुत सुनाई पड़ती है । क्रान्ति का अर्थ है आमूल परिवर्तन । अन्य समाजों मे क्रान्तियाँ हुई है , किन्तु  वे सभी रक्तपात से युक्त तथा परस्पर वैमनस्य उत्पन्न करने वाली हुई । उनका परिणाम समाज जीवन के पतन के रूप मे सामने आया । 

3- हमारे देश मे जो क्रान्तियाॅ हुई वे समाज जीवन को बलशाली करने वाली हुई । उदाहरण - श्रीराम , श्रीकृष्ण , चाणक्य द्वारा महापद्मनन्द का नाश व चन्द्रगुप्त को आगे लाया जाना , क्षत्रपति शिवाजी द्वारा हिन्दू पदपादशाही की स्थापना , ऐसे कई उदाहरण है । ये सभी संक्रांतियाॅ थी ।

क्रान्ति के चार चरण - किसी भी परिवर्तन के चार बातों की आवश्यक्ता होती है , सर्वप्रथम एक विचार जो शाश्वत सिद्धान्तों पर आधारित हो । दूसरा चरण है योजना , उसके बाद योजना पूर्ति के लिये संगठन , तथा अंतिम लक्ष्य- प्राप्ति ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिन्दू -राष्ट्र को परमवैभव  पर पहुंचाने का लक्ष्य अपने सामने रखा , यह प्रथम चरण है ।

इसी विचार की सिद्धि के लिये समाज के व्यक्ति - व्यक्ति को संस्कारित करने की योजना हमने बनाई है ।
दैनिक शाखा के माध्यम से हम इस योजना की पूर्ति के लिये संघठक तैयार कर रहे है । इसी दैनन्दिन शाखा के द्वारा समाज मे परिवर्तन लाकर हम अपने राष्ट्र को समुन्नत करने मे सफल होगे । हमारा विचार विधायक है , हम स्थायी परिवर्तन मे ( जिसकी गति धीमी होती है ) विश्वास रखते है ।
इस प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज जीवन मे संक्रान्ति लाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है ।

इस प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज में संक्रांति लाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है ! 


मकर सक्रान्ति अर्थात् उत्तरायण महापर्व के दिन से अंधकारमयी रात्रि छोटी होती जायेगी और प्रकाशमय दिवस लम्बे होते जायेंगे। हम भी इस दिन दृढ़ निश्चय करें कि अपने जीवन में से अंधकारमयी वासना की वृत्ति को कम करते जायेंगे और सेवा तथा प्रभुप्राप्ति की सद् वृत्ति को बढ़ाते जायेंगे।

सम्यक् क्रांति का संदेश
मकर सक्रान्ति – ‘सम्यक् क्रान्ति’। वैसे समाज में क्रांति तो बहुत है, एक दूसरे को नीचे गिराओ और ऊपर उठो, मार-काट…. परंतु मकर सक्रान्ति बोलती है मार-काट नहीं, सम्यक् क्रान्ति। सबकी उन्नति में अपनी उन्नति, सबकी ज्ञानवृद्धि में अपनी ज्ञानवृद्धि, सबके स्वास्थ्य में अपना स्वास्थ्य, सबकी प्रसन्नता में अपनी प्रसन्नता। दूसरों को निचोड़कर आप प्रसन्न हो जाओगे तो हिटलर और सिकंदर का रास्ता है, कंस और रावण का रास्ता है। श्री कृष्ण की नाईं गाय चराने वालों को भी अपने साथ उन्नत करते हुए संगच्छध्वं संवदध्वं…. कदम से कदम मिलाकर चलो, दिल से दिल मिलाकर चलो। दिल से दिल मिलाओ माने विचार से विचार ऐसे मिलाओ कि सभी ईश्वरप्राप्ति के रास्ते चलें देर-सवेर और एक दूसरे को सहयोग करें।

उत्तरायण पर्व कैसे मनायें ?
इस दिन स्नान, दान, जप, तप का प्रभाव ज्यादा होता है। उत्तरायण के एक दिन पूर्व रात को भोजन थोड़ा कम लेना। दूसरी बात, उत्तरायण के दिन पंचगव्य का पान पापनाशक एवं विशेष पुण्यदायी माना गया है। त्वचा से लेकर अस्थि तक की बीमारियों की जड़ें पंचगव्य उखाड़ के फेंक देता है। पंचगव्य आदि न बना सको तो कम-से-कम गाय का गोबर, गोझरण, थोड़े तिल, थोड़ी हल्दी और आँवले का चूर्ण इनका उबटन बनाकर उसे लगा के स्नान करो अथवा सप्तधान्य उबटन से स्नान करो (पिसे हुए गेहूँ, चावल, जौ, तिल, चना, मूँग और उड़द से बना मिश्रण)। इस पर्व पर जो प्रातः स्नान नहीं करते हैं वे सात जन्मों तक रोगी और निर्धन रहते हैं। मकर सक्रान्ति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने से दस हजार गौदान करने का फल शास्त्र में लिखा है और इस दिन सूर्यनारायण का मानसिक रूप से ध्यान करके मन ही मन उनसे आयु आरोग्य के लिए की गयी प्रार्थना विशेष प्रभावशाली होती है।
इस दिन किये गये सत्कर्म विशेष फलदायी होते हैं। इस दिन भगवान शिव को तिल, चावल अर्पण करने अथवा तिल, चावल मिश्रित जल से अर्घ्य देने का भी विधान है। उत्तरायण के दिन रात्रि का भोजन न करें तो अच्छा है लेकिन जिनको संतान है उनको उपवास करना मना किया गया है। इस दिन जो 6 प्रकार से तिलों का उपयोग करता है वह इस लोक और परलोक में वांछित फल को पाता हैः

पानी में तिल डाल के स्नान करना।
तिलों का उबटन लगाना।
तिल डालकर पितरों का तपर्ण करना, जल देना।
अग्नि में तिल डालकर यज्ञादि करना।
तिलों का दान करना।
तिल खाना।
तिलों की महिमा तो है लेकिन तिल की महिमा सुनकर अति तिल भी न खायें और रात्रि को तिल और तिलमिश्रित वस्तु खाना वर्जित है।

सूर्य उपासना करें
ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि। तन्नो भानुः प्रचोदयात्। इस सूर्यगायत्री के द्वारा सूर्यनारायण को अर्घ्य देना विशेष लाभकारी माना गया है अथवा तो ॐ सूर्याय नमः। ॐ रवये नमः।…. करके भी अर्घ्य दे सकते हैं।

आदित्य देव की उपासना करते समय अगर सूर्यगायत्री का जप करके ताँबे के लोटे से जल चढ़ाते हैं और चढ़ा हुआ जल जिस धरती पर गिरा, वहाँ की मिट्टी का तिलक लगाते हैं तथा लोटे में 6 घूँट बचाकर रखा हुआ जल महामृत्युञ्जय मंत्र का जप करके पीते हैं तो आरोग्य की खूब रक्षा होती है। आचमन लेने से पहले उच्चारण करना होता हैः

अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
सूर्यपादोदकं तीर्थं जठरे धारयाम्यहम्।।
अकाल मृत्यु को हरने वाले सूर्यनारायण के चरणों का जल मैं अपने जठर में धारण करता हूँ। जठर भीतर के सभी रोगों को और सूर्य की कृपा से बाहर के शत्रुओं, विघ्नों, अकाल मृत्यु आदि को हरे।

भीष्म पर्व
भीष्म पितामह संकल्प करके 58 दिनों तक शरशय्या पर पड़े रहे और उत्तरायण काल का इंतजार किया था। बाणों की पीड़ा सहते हुए भी प्राण न त्यागे और पीड़ा के साक्षी बने रहे।

भीष्म पितामह से राजा युधिष्ठिर प्रश्न करते हैं और भीष्म पितामह शर-शय्या पर लेटे-लेटे उत्तर देते हैं। कैसी समता है इस भारत के वीर की ! कैसी बहादुरी है तन की, मन की और परिस्थितियों के सिर पर पैर रखने की ! कैसी हमारी संस्कृति है ! क्या विश्व में कोई ऐसा दृष्टांत सुना है ?
उत्तरायण उस महापुरुष के सुमिरन का दिवस भी है और अपने जीवन में परिस्थितिरूपी बाणों की शय्या पर सोते हुए भी समता, ज्ञान और आत्मवैभव को पाने की प्रेरणा देने वाला दिवस भी है। दुनिया की कोई परिस्थिति तुम्हारे वास्तविक स्वरूप – आत्मस्वरूप को मिटा नहीं सकती। मौत भी जब तुम्हारे को मिटा नहीं सकती तो ये परिस्थितियाँ क्या तुम्हें मिटायेंगी !

हमें मिटा सके ये जमाने में दम नहीं।
हमसे जमाना है, जमाने से हम नहीं।।
यह भीष्म जी ने कर दिखाया है।
उत्तरायण का पावन संदेश

सूर्यदेव आत्मदेव के प्रतीक हैं। जैसे आत्मदेव मन को, बुद्धि को, शरीर को, संसार को प्रकाशित करते हैं, ऐसे ही सूर्य पूरे संसार को प्रकाशित करता है। लेकिन सूर्य को भी प्रकाशित करने वाला तुम्हारा आत्मसूर्य (आत्मदेव) ही है। यह सूर्य है कि नहीं, उसको जानने वाला कौन है ? ‘मैं’।

उत्तरायण का मेरा संदेश है कि आप सुबह नींद में से उठो तो प्रीतिपूर्वक भगवान का सुमिरन करना कि ‘भगवान ! हम जैसे भी हैं, आपके हैं। आप ‘सत्’ हैं, तो हमारी मति में सत्प्रेरणा दीजिये ताकि हम गलत निर्णय करके दुःख की खाई में न गिरें। गलत कर्म करके हम समाज, कुटुम्ब, माँ-बाप, परिवार, आस-पड़ोस तथा औरों के लिए मुसीबत न खड़ी करें।’ ऐसा अगर आप संकल्प करते हैं तो भगवान आपको बहुत मदद करेंगे। भगवान उन्हीं को मदद करते हैं जो भगवान को प्रार्थना करते हैं, भगवान को प्रीति करते हैं। और भगवान के प्यारे संतों का सत्संग सुनने के लिए वे ही लोग आ सकते हैं जिन पर भगवान की कृपा होती है।

बिन हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।
(रामायण)

भारत माता की जय  ! 


Santoshkumar B Pandey at 12.10PM.

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