"राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में गुरु पूर्णिमा & समर्पण का महत्व"

संघ का कार्य कौन करेगा? स्वयंसेवक करेगा। संघ कार्य के लिए धन कौन देगा? स्वयंसेवक देगा। किस भावना से देगा? चन्दे की भावना से देगा या दान की भावना से देगा? नहीं। दक्षिणा की भावना से देगा यानी त्याग की भावना से देगा। दक्षिणा का अर्थ है श्रद्वा से दिया गया धन, जिसका मूल्य अंकों में नहीं गिना जा सकता। दक्षिणा किसे देना है? गुरू को। स्वयंसेवक का गुरू कौन है? डाक्टर जी ने बताया अपना गुरू भगवा ध्वज है। अपना गुरू कोई व्यक्ति नहीं है। अपना गुरू *भगवा ध्वज* हैं। यह त्याग का प्रतीक है, यह पवित्रता का चिन्ह है, यह पराक्रम की निशानी है। भगवा ने भगवान का तेज समाया है।
दक्षिणा दान नहीं वरन समर्पण है और भगवा ध्वज के सम्मुख सम्पूर्ण समर्पण करने वाला ही स्वयंसेवक है। किसी ने गुरूदक्षिणा अधिक दी, इसमें उसका कोई बड़प्पन नहीं, जिसने दक्षिणा कम दी, उसकी कोई अवेहलना नहीं- संघ में सब समान हैं। इस प्रकार से संघ में गुरूदक्षिणा पद्वति आरंभ हुई और संघ का शक्तिसोत्र ‘स्वंयसेवक के समर्पण भाव में निहित हुआ।🌷🌹🙏
संघ का गुरु कौन ?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जब पहला गुरु पूजन कार्यक्रम होना तय हुआ , सभी यह विचार कर रहे थे आखिर किसको गुरु माना जाए ? स्वयंसेवकों ने मंत्रणा किया और गुरु के रूप में माननीय हेडगेवार जी को पूजने का मन बना लिया। किंतु हेडगेवार जी यह जानते थे कि उनका शरीर सदैव के लिए नहीं रहेगा।
यह संघ अनेकों-अनेक साल तक फलता-फूलता रहेगा , किंतु कोई भी व्यक्ति लम्बे समय तक जीवित नहीं रह सकता। इसलिए संघ का गुरु कोई ऐसा होना चाहिए जो , संघ में गुरु के रूप में सदैव , सर्वत्र विद्यमान रहे।
आदि काल से गुरुओं की स्थिति देखी गई तो समझ आया , किस प्रकार गुरु को मारकर उनके विचारों को दबाया जाता रहा है। सिख धर्म में कितने ही गुरु की शहादत देखने को मिली है। उसके उपरांत सिख धर्म के लोग अपने गुरु को पुस्तक के रूप में स्वीकार करते हैं। उनका गुरु ग्रंथ साहिब ही उनका गुरु है , वह किसी व्यक्ति को गुरु नहीं मानते।
काफी चिंतन मनन के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भगवा ध्वज को गुरु के रूप में स्वीकार किया गया। भगवा ध्वज दो रंगों से मिलकर बना है लाल तथा पीला
- लाल रंग तेज , उत्साह , क्रांति , उग्रता को प्रदर्शित करता है।
- वही पीला रंग सहनशीलता का परिचायक है।
इन दोनों के मिश्रण से भगवा रंग तैयार होता है। जिसमें तेज , क्रांति , उग्रता के साथ-साथ सहनशीलता भी विद्यमान है। जहां जिसकी आवश्यकता होती है उसका प्रयोग किया जाता है।
आपने देखा होगा यज्ञ की ज्वाला उसकी शिखाको। ध्यान से देखें तो आभास होता है वह भगवा रंग का है। यह ज्वाला , यह तेज बुराइयों का नाश कर उसके सभी पापों को जलाकर भस्म कर देता है। इस रंग को पवित्र माना गया है।
संघ में भगवा ध्वज को स्वीकार करने और व्यक्ति को गुरु के रूप में स्वीकार न करने के पीछे एक कारण और है। व्यक्ति का जीवन नश्वर है , उसके जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते है। उसके निजी जीवन में अनेकों कमियां होती है। उसमें उग्रता , कटुता , दया भाव की कमी , यहां तक कि कई बार व्यक्ति पथभ्रष्ट भी हो जाता है।
प्राचीन समय में विश्वामित्र प्रसिद्ध तपस्वी हुए , उन्होंने जीवन भर तप किया। किंतु मेनका के क्षण भर आकर्षण में उनका संपूर्ण तप व्यर्थ हो गया। साधारण शब्दों में कहें तो वह पथभ्रष्ट हो गए।
इस प्रकार सामान्य व्यक्तियों में भी अनेकों अनेक कमियां होती है। उनकी कमियों के कारण संघ बदनाम ना हो , उस पर किसी प्रकार का दाग न लगे , किसी एक व्यक्ति के कृत्य से संघ की छवि खराब ना हो , इस विचार को ध्यान में रखते हुए भगवा ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया।
भगवा ध्वज भारतीय संस्कृति में प्राचीन समय से देखने को मिलता है। यह ध्वज हिंदू धर्म ही नहीं सभी धर्म के लोग होते हैं बौद्ध , जैन आदि धर्म के लोग तथा सहिष्णु लोग इस ध्वज की पूजा करते हैं। हमारे महापुरुष शिवाजी , महाराणा प्रताप , लक्ष्मी बाईयहां तक की हमारी संस्कृति में श्री राम , अर्जुन और श्री कृष्ण आदि के रथ पर भी इस ध्वज को देखा जा सकता है।
संघ में प्रयोग किए जाने वाले भगवा ध्वज की आकृति अखंड भारत को प्रदर्शित करती है। साथ ही साथ वह समर्पण और प्रोत्साहन को भी प्रदर्शित करती है। आप भगवा ध्वज को देखें तो नीचे का भाग बड़ा है , और ऊपर का भाग छोटा। यह प्रदर्शित करता है कि संघ में बड़े लोग सदैव छोटे को उत्साहित करते हैं , उन को प्रोत्साहित करते हैं। स्वयं को नीचे रखते हुए अपने से छोटे को ऊपर उठाने का प्रयत्न करते हैं। अर्थात बड़े अपने से छोटों के लिए नींव का काम करते हैं।
गुरु दक्षिणा
गुरु दक्षिणा की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। गुरु अपने शिष्य को जो शिक्षा देता है , उसके बदले वह दक्षिणा प्राप्त करता है। गुरु दक्षिणा को अर्थ रूप में प्राप्त करता है या फिर वचन रूप में। जो शिक्षा गुरु से प्राप्त की है , वह समाज के लिए लाभकारी हो।संघ में गुरु दक्षिणा का कार्यक्रम वर्ष में एक बारकिया जाता है। यह गुरु दक्षिणा स्वयंसेवक अपने समर्पण भाव से देता है। यह समर्पण मात्र एक दिन का नहीं वरन 365 दिन का होता है। स्वयंसेवक वर्ष भर अपना समर्पण जमा करता है और गुरु दक्षिणा के दिन भगवा ध्वज को समर्पित कर देता है।
समर्पण केवल द्रव्य , पैसे का नहीं उसके भावों का उसके विचारों का तथा उसके त्याग का समर्पण भी गुरु दक्षिणा होता है।
जो स्वयंसेवक गरीब , अक्षम होता है , जो सामर्थ्य नहीं होता। वह एक पुष्प के रूप में भी अपना समर्पण भगवा ध्वज को समर्पित करता है।
संघ का कार्य बड़े व्यापक तौर पर चलता है , उसको अपने कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है। इस धन की आवश्यकता पूर्ति गुरु दक्षिणा में प्राप्त राशि से किया जाता है।
इस राशि के माध्यम से
आदिवासी कल्याण योजना
आपदा सहायता
संस्कृति बचाओ
पूर्णकालिक समर्पित प्रचारक
वनवासी कल्याण
आदि अनेकों-अनेक ऐसे समाज के लिए किया जाता है , जिससे भारत सशक्त और मजबूत हो सके।
गुरु दक्षिणा की राशि का प्रयोग जाति , धर्म , पंथआदि को देखकर नहीं किया जाता। बल्कि यह सभी के हितों को ध्यान में रखकर किया जाता है।
जम्मू कश्मीर में अनेकों ऐसे बच्चे अनाथ हो जाते हैं जिनके माता-पिता आतंकवादी हमले में मारे जाते हैं। उन बच्चों को स्वयंसेवक अपनाता है और उनके शिक्षा और भोजन की व्यवस्था करता है।
ऐसा एक वाक्य देखने को मिला , एक आतंकवादी को सेना मार गिराती है। उसके बच्चे की परवरिश के लिए आर एस एस (RSS) को सौंपा जाता है। उस बच्चे से दाखिले के समय प्रश्न किया जाता है। वह भविष्य में क्या बनेगा ? तब वह बताता है वह बड़ा होकर आतंकवादी बनेगा।
कुछ वर्षों बाद जब उसे पुनः पूछा जाता है , तब वह कहता है बड़ा होकर वह सैनिक बनेगा। बड़ा होकर वह आतंकवादियों का नाश कर देगा। उसे पूछा गया एक वर्ष पूर्व तुमने आतंकवादी बनने की बात कही थी। तब उस लड़के ने बताया वह अज्ञानता वश उसने कहा था। वह नहीं जानता था उसके पिता आतंकवादी थे , वह समाज के लिए हानिकारक है , वह निर्दोष लोगों की हत्या करते थे। सैनिकों ने मार कर पुण्य का काम किया। मैं ऐसा ही सैनिक बनूंगा जिससे समाज की रक्षा हो सके।
इस प्रकार समाज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवर्तनका कार्य करता है। उनके उत्थान का कार्य करता है। किसी भी प्रकार की आपदा में बिना सरकारी मदद हुआ सबसे पहले पहुंच जाता है। यह सभी कार्य गुरु दक्षिणा में प्राप्त राशि से ही संभव हो पाता है।
ग्रामीण और वनवासी क्षेत्र में ईसाई मिशनरी तथा अनेकों धर्म के लोग पूंजी का झांसा देकर उनका धर्म परिवर्तन कराते हैं। ऐसे गरीब और असहाय लोगों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शिक्षा और उनके जरूरत की वस्तुओं को पहुंचाता है। उन्हें सम्मान की जिंदगी बनाए रखने का भाव जागृत करता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में दान , भिक्षा आदि का भाव रखने वालों से राशि नहीं ली जाती। यह समर्पण और त्याग की भावना रखने वाले स्वयंसेवकों से ही दिया जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी अन्य व्यक्ति से भी इस प्रकार की राशि प्राप्त नहीं। करता वह चंदाया अन्य माध्यम से भी राशि को नहीं लेता। जो व्यक्ति स्वयंसेवक हो और वह वर्ष भर में एक बार गुरु दक्षिणा करता हो उसी स्वयंसेवक से गुरु दक्षिणा की राशि ली जाती है।
समर्पण का भाव इस प्रकार का होना चाहिए। जैसे एक स्वयंसेवक रिक्शा चलाते हैं उन्होंने प्रण ले रखा है वह प्रथम सवारी से प्राप्त राशि को समर्पण गुरु दक्षिणा के लिए वर्ष भर में एकत्रित करते हैं। गुरु दक्षिणा के दिन भगवा ध्वज को समर्पित करते हैं। इस प्रकार के समर्पण की भावना यही गुरु दक्षिणा में स्वीकार की जाती है।
भारत माता की जय 🕉️🚩💐🌹💓🙏
Santoshkumar B Pandey at 3.45Pm.







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